बुधवार, 8 नवंबर 2017

स्व


- इंदु बाला सिंह

राजनीति भी क्या गजब चीज है 
पिसता है स्व
और परीक्षा लेती रहती है जनता ।

हाय ये मुआ स्मार्टफोन !


- इंदु बाला सिंह

दादी बड़े ध्यान से पढ़ रही थी किताब 
पन्ना खत्म हुआ ...
उन्होंने पन्ने को ऊपर सरकाने की चेष्टा की ...
बगल में बैठा पोता हंस पड़ा ।

मति का फेर


- इंदु बाला सिंह

लाख रोको तुम ... रुकेंगा नहीं वो 
बंधेगा न अब वो तेरे प्रेम में
कहीं कमी तूझमें ही रही होगी ...
मन की आस सुला दे तू ...लौटेंगा नहीं अब वो ......
खुश रह तू
पंख उग गये हैं उसके ।

आज के दिन तुम मेरी हो


-इंदु बाला सिंह

तुम्हारे एक दिन के छठ व्रत पे 
कुर्बान है मेरे साल के तीन सौ चौंसठ दिन ...
भूल जाता हूं
मैं तुम्हारे दिये हुये सारे सामाजिक अपमान
आखिर आज के दिन तुम मेरी हो ।

दहेज लेना गलत है |


Thursday, November 09, 2017
10:14 AM


-इंदु बाला सिंह


तीस वर्ष का हो गया
प्राइवेट नौकरी में पक गया
सुबह पांच बजे निकल रात दस बजे अपने किराये के कमरे में लौट जीता रहा 
मेरे सहपाठी गहनों से लदी पत्नी , मकान का मालिक और अपने  बच्चों के पिता बन गये

मुझे हर वर्ष सरकारी नौकरी का इम्तिहान निराश करता रहा
मैं अपने मकान में बसने के सपने देखता रहा ......

मेरे दहेज न लेने के जुनून ने मुझे क्वांरा रख दिया |