शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

अपनी संतान से बड़ा न कोय


-इंदु बाला सिंह

कभी कभी मन रोता है 
पर जरूरी होता है मुस्कुराना .....
पल भर में मन को दबा कर आखें मुस्कुरा उठतीं हैं ....
बड़ा जरूरी होता है जीना अपनों के लिये ।

पैसा अच्छा है ।


- इंदु बाला सिंह

पैसा 
तू कितना अच्छा है
तेरे कारण
बैंक जैसे धनी को भी याद रहता है
मेरा जन्मदिन ।

रहती हूं दुश्मनों के कस्बे में


- इंदु बाला सिंह

पैसे ने ढहा दी ....दीवारें रिश्तों की 
चलो निहंग हैं ....तो क्या .... आजाद तो हैं
कल की कल सोंचेंगे ...
वैसे दुश्मनों के कस्बे में .... बड़ा मजा आता है ...
चलने में ... चलते रहने में ।

आस सहारे की


-इंदु बाला सिंह

पिया की प्यारी
उम्र की मारी
अस्सी की उम्र में
रो दी ...अपने बेटे के सामने
गलती तो की थी उसने
अपने पति के साथ का अपना जॉइंट बैंक बैलेंस अपने बेटे के नाम कर दिया था
आजीवन पति की सहगामिनी रही पत्नी ने पति के गुजरते ही आस लगा लिया अपने बेटे से ।

मौसम का स्वार्थ


-इंदु बाला सिंह
पौधा ऐसा मरा मौसम के सूखे में 
कि
टहनी में फिर कोंपल न लगी बरसात में भी
धीरे धीरे टहनी भी सड़ने लगी ......
आखिर क्यों रहते हैं लोग बाढ़ग्रस्त इलाके में ?

मजबूत हो चुकी थीं पाँखें


- इंदु बाला सिंह
मिली जब तक सुरक्षा आर्थिक और सामाजिक 
रहे..... बच्चे पास घोंसले में .....जन्मदाता के पास
फिर ....उड़ चले आकाश ....
बैठ गये ....दूसरे पेड़ पे
बना लिये .....अपना घोंसला ,,,,
उनकी पाँखें मजबूत हो चुकीं थीं ।

तलाश छांव की


- इंदु बाला सिंह
पुरुष सत्ता का आनंद उठायी लड़की 
तलाशती है एक प्रेमी ...जिससे वह
बिना दहेज के ब्याह कर सके
और उसके घर में वह सुरक्षित रह सके .......
वह आजीवन सुरक्षा तलाशती है ...... एक छांव तलाशती है ।