अँधेरे में
मनदीप
के सहारे
चलता अस्तित्व एकाएक ठिठक गया
आशंका सही निकली
जोर की आंधी पानी के साथ आयी
दीपक को बुझने से बचाती चेतना बौखलाती रही
ओले पड़ते रहे
साँस हर पल रुकती सी लगी
आखिर थक गया मौसम
वह बौखलाई सी
देखने लगी
समेटने
लगी अपने टूटे ख्वाबों को |
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