शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

मैं लेखक बनूंगी ।


 

 

 

नौकरी करने की मंजूरी नहीं मिलेगी

 

उसे ससुराल में

 

मैके में लोग नसीहत देते थे

 

उसने सोचा

 

कोई बात नहीं  वह लेखिका बन जाएगी

 

खाली समय में कहानियां या उपन्यास लिखेगी

 

यह भी तो एक जरिया है कमाने का ......

 

घर में आर्थिक अभाव था

 

खाने की चिंता थी

 

कर्जों का बोझ था

 

दिमाग कलाबाजियां खा रहा था

 

जीवनसाथी घर छोड़ कर चला गया

 

हाड़ तोड़ परिश्रम कर रही थी कमाने के लिए ...

 

जीवन

 

स्वयं एक उपन्यास बन गया

 

पर

 

वह लेखक न बन सकी ।

 

 

उस बावरी को ज्ञान न था

 

लेखन भरे पेट के संग चलता है .......

 

जीवन संध्या आ गई

 

हसरत से देखती रह गई वह

 

अपने बचपन के स्वप्न को

 

जो उसके संग मिटने वाला था एक दिन ।

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें