आज बंबई में
कॉलोनी की औरतें
दिख रहीं हैं शाम से देर रात तक पार्क में
छोटे टी शर्ट हों
या
लॉन्ग कमीज
निकर हो
या
ट्राउजर्स
शाम के सात बजे हों या रात के ग्यारह बजे हों
जब समय मिले घुमातीं हैं अपने बच्चे .......
जिनके बच्चे बड़े हो चुके हैं
वे औरतें भी
खुद सेहत बनाती हैं ........
रात ग्यारह बजे उनकी शाम ही है
आत्मविश्वास से भरी ये औरतें
जीतीं हैं अपना जीवन
बच्चियां हों या बड़ी औरतें हों
उनका आत्मविश्वास
मेरे पंखों को मजबूत करता है
मैं भी वाकिंग करती रहती हूं
उन युवा औरतों को देख
मैं भी युवा बन जाती हूं
यूं लगता है
मैं इस समय ैमं सत्तर वर्षीया नहीं हूं
युवा हूं
आज
मैं जी रही हूं आजाद जिंदगी
मेरा आकाश आधा नहीं
पूरा का पूरा मेरा है ।