रविवार, 20 मई 2018

नसीबोंवाली


- इंदु बाला सिंह

शाम हो गई है

लोग अपने घर लौट रहे हैं

पर मैं लौट रही हूं अपना सिर छुपाने की जगह में ....

रात जितना गहरायेगी

उतना ही मधुर तान निकलेगा कण्ठ से

उस कहानीवाली चिड़िया की तरह ...


" मैं सबसे धनी .....मैं सबसे धनी ... "


आखिर मेरे सिर पर छत है ....

मैं नसीबोंवाली हूँ ।


शनिवार, 19 मई 2018

और मैं निकल पड़ी



Monday, April 02, 2018
6:17 AM


-इंदु बाला सिंह



भीड़ में रह कर भी भानेवाला अकेलापन

न जाने कैसे बदल गया

सूनेपन में .....

यह आंधी से पूर्व की निस्तब्धता थी

आंधी का सामना कर पाना भी तो मनोबल बढ़ाता है

और

मैं निकल पड़ी |